पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३७ )


धारण होना उस बात से कोई व्यंग्य नहीं निकाल सकता, किंतु उसका कहनेवाला कौन है, वह बात किससे कही जा रही है-इत्यादि के साथ उसको समझने पर, व्यंजक साधारण हो अथवा असाधारण, व्यंग्य समझ मे आ सकता है। प्रत्युत यदि वह बात ऐसी हो कि जो किसी विशेष वस्तु से ही संबंध रखती हो, तो वह अनुमान के अनुकूल होगी और व्यंजना के प्रतिकूलअर्थात् उससे व्यजना नहीं, अपितु अनुमान होगा। अव यदि आप कहे कि "ऊपरी भाग' आदि शब्दों से रचित होने पर भी "सब चंदन उड़ गया है" इत्यादि वाक्यार्थ असाधारण न हुए; क्योंकि गीले कपड़े से पुंछ जाने आदि से भी वे बातें हो सकती हैं तो हम आपसे पूछते हैं कि बावड़ी के स्नान के हटा देने से क्या फल हुआ, उसके लिये क्यों इतना परिश्रम किया गया? क्योंकि जिस तरह एक स्थान पर व्यमिचरित होना-संभोग के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु से संबंध रखना-अनुमान के प्रतिकूल है और व्यंजना के नहीं, उसी प्रकार अनेक स्थानों पर व्यभिचरित होना भी। अतः यह सब प्रयास व्यर्थ है।

यह तो हुई एक बात। अब एक दूसरी बात और लीजिए। नायिका के इस कथन से यह व्यंग्य निकलता है कि "तू उसके पास ही रमण करने गई थी। विचारकर देखने से ज्ञात होगा कि यह व्यंग्य दो बातों से बना हुआ है। उनमे से एक बात है "उसके पास ही गई थी। यह, और दूसरी है