यह तो हुई पुराने ग्रंथो से विरोध की बात। अब हम आपसे पूछते हैं आप जो "सब चंदन हट गया है" इत्यादि वाक्यार्थो को बावड़ी मे नहाने से हटाकर केवल संभोग के ही सिद्ध करने मे लगा रहे हैं, सो क्यों लगा रहे हैं? इससे व्यंग्य अर्थ निकल सके इसलिये? सो तो है नहीं; क्योंकि व्यग्य अर्थ निकलने के लिये "उसको व्यक्त करनेवाली वस्तुएँ उसी से संबंध रखनेवाली होनी चाहिएँ, वे और किसी से संबंध न रखें" इस बात का होना आवश्यक नहीं है। देखिए, दूती नायक से संभोग करके नायिका के पास आई है। उसकी दशा देखकर नायिका उससे कहती है-
ओण्णिद दोब्बल्ल चिन्ता अलसत्तण सणीससिअम्।
मह मन्दमाइणीए केरं सहि! तुह वि अहह! परिहवइ॥
हे सखि! हाय! मुझ मंदभागिनी के लिये तुझे भी जागरण, दुर्बलता, चिंता, आलस्य और दम भरजाने ने दबा रखा है, तू भी इनसे दुःखित हो रही है। यहाँ जागरण आदि बातें जैसी संयोगिनी (दूती) मे हैं, वैसी ही वियोगिनी (नायिका) मे भी हैं, एवं ये ही बातें रोगादि से भी हो सकती है; अतः ये सर्वथा साधारण बाते हैं। पर इन्हीं बातों पर जब यह विचार करते है इनकी कहनेवाली कौन है और वह इन बातों को किससे किस अवसर पर कह रही है तो स्पष्ट हो जाता है कि वह उसके संभोग को लक्ष्य करके कह रही है। अतः यह सिद्ध हुआ कि किसी बात का साधारण अथवा असा-