"ऊपरी भाग"-आदि शब्दों से बने हुए वाक्यों के अर्थ हैं, वे संभोग के अंग-आलिंगन, चुंबन आदि के प्रतिपादन के द्वारा प्रधान व्यंग्य (संभोग) के व्यक्त करने में सहायता करते हैं। अर्थात् इस प्रकार के कथन से यह प्रकट होता है कि दुती की यह दशा संभोग से ही हुई है, अन्य किसी प्रकार नहीं।
पंडितराज कहते हैं कि अप्पय दीक्षित का यह विवेचन अलंकारशास्त्र के तत्त्व को न समझने के कारण है; क्योंकि ऐसा करना इन बातों का अन्य सब वस्तुओं से हटाकर केवल संभोग मे ही लगाना सब पुराने ग्रंथों से एवं युक्ति से विरुद्ध है। देखिए-
'काव्यप्रकाशकार' ने पंचम उल्लास के अंत मे इसी उदाहरण का विवेचन करते हुए कहा है-"पूर्वोक्त उदाहरण मे जो 'चंदन का हटना' आदि लिखे हैं, वे दूसरे कारणो से भी हो सकते हैं, केवल संभोग के द्वारा ही नहीं; क्योंकि इसी श्लोक में उनको स्नान का कार्य बताया गया है; इस कारण वे कार्य एक ही वस्तु से संबंध रखते हों ऐसे नहीं हैं, दूसरी वस्तुओ से भी हो सकते हैं। और वहीं उन्होंने "व्यक्तिविवेक" कार का जो यह मत है कि-
भम*[१] धम्मिअ! वी सत्थो सो सुणो अन्न मालिदो देण।
गोलाईकच्छकुडङ्गवासिणा दरी असीहेण॥
- ↑ * किसी नायिका ने गोदावरी नदी के तीर-वर्ती एक कुज को अपना संकेतस्थान बना रखा था, पर वहाँ एक महात्माजी नित्य पुष्प लेने के