पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१४५

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यह तो है रस (संभोग शृंगार) का उदाहरण-अर्थात् इस पद्य के शब्द और अर्थ गौण होकर रति को व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार भाव (हर्ष आदि व्यभिचारी भाव) भी अभिव्यक्त होते है। अच्छा, इसका भी उदाहरण लीजिए-

गुरुमध्यगता मया नताङ्गी निहता नीरजकोरकेण मन्दम्।
दरकुण्डलताण्डवं नतभ्रू लतिकं मामवलोक्य धृर्णिताऽसीत्॥

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हनी गुरुन बिच नतमुखी कमल-मुकुल ते झूमि।
कुण्डल कछुक नचाए, भौ नाम, निरखि गइ घूमि॥

नायक अपने मित्र से कह रहा है-सास-ननद आदि गुरुजनों के बीच मे बैठो हुई अतएव लज्जा के मारे नम्र प्रियतमा को, मैंने, हलके हाथ से, कमल की डोडी से मार दिया। उसने कुंडलो को कुछ नचाकर एवं भौंहे नीची करके मुझे देखा और फिर (दूसरी तरफ) घूम गई–मुँह फेर लिया।

इस पद्य मे "घूम गई" इस वाक्य से "ऐ! बिना सोचे समझे कर गुजरनेवाले। तैंने यह अनुचित कार्य क्यों कर डाला" इस अर्थ से युक्त ""अमर्ष" भाव प्रधानतया ध्वनित होता है, और उसकी अपेक्षा श्लोक के शब्द और अर्थ गौण हो गए है—अर्थात् उनमे वह मजा नहीं है, जो अमर्ष भाव की अभिव्यक्ति मे है।

अब एक दूसरे विचार से उत्तमोत्तम कान्य का एक उदाहरण और देते हैं। वह विचार यह है-अब तक जितने