पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१४२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(२७)


उदाहरण—

शयिता सविधेऽप्यनीश्वरा सफलीकर्त्तुमहो मनोरथान्।
दयिता दयिताननाम्बुजं दरमीलन्नयना निरीक्षते॥

सोई सविध, सकी न करि सफल मनोग्य मञ्जु।
निरखति कछु मीचे नयन प्यारी पिय-मुखकञ्जु॥

प्रियतमा अपने प्रियतम के समीप सोई है; पर आश्चर्य है कि वह अपने मनोरथो को सफल करने में असमर्थ है—उसकी शक्ति नहीं है कि वह अपनी अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकें, अतः नेत्रों को कुछ कुछ मुकुलित करती हुई प्रियतम के मुख-कमल को देख रही है।

इस श्लोक में नायिका की रति के आलंबन नायक के, पति-पत्नी के समीप सोने के कारण प्राप्त हुए एकांत-स्थान आदि उद्दीपन के, कुछ कुछ मुकुलित नेत्रों से देखने रूपी अनुभाव के, और देखने के कुछ कुछ होने के कारण व्यक्त होनेवाली लज्जा तथा देखने के कारण व्यक्त होनेवाले औत्सुक्य रूप व्यभिचारी भावो के संयोग से रति (स्थायी भाव) की अभिव्यक्ति होती है—अथवा यों कहिए कि पति-पत्नी का पारस्परिक प्रेम प्रतीत होता है। आलंबन आदि पदार्थों का स्वरूप (अर्थात् वे क्या वस्तु हैं, यह) आगे वर्णन किया जायगा।

अब यहाँ एक शंका उत्पन्न होती है—इस पद्य में "रवि की अभिव्यक्ति होती है" यह न मानकर 'यदि यह सो गया हो,