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यह तो हुआ "शब्द" को काव्य मानना चाहिए, अथवा "शब्द-अर्थ" दोनों को, इस बात का विचार। अब दूसरी बात लीजिए। प्राचीन आचार्यों ने काव्य के लक्षण में, शब्द और अर्थ के साथ एक विशेषण लगाया है "गुण एवम् अलंकार सहित"। सो यह भी ठीक नहीं। क्योंकि "उदितं मण्डलं विधोः" इस संस्कृत वाक्य अथवा "चन्द्र उग्यो नभ मांहि" इस हिंदी वाक्य को, कोई नायक के संकेत स्थान पर जाने के लिये इस अभिप्राय से कहे—प्रकाश हो गया अब कही काँटा खीला लगने का डर नहीं; अथवा कोई अभिसारिका दूती से, यह समझकर कि—अब प्रकाश हो गया, कोई देख लेगा, निषेध करने के लिए कहे, यदि कोई विरहिणी अपने सुहद्वर्ग को वह सुझाने के लिये कहे कि अब मैं न जी सकूँगी तो भी आपके हिसाब से वह काव्य न होगा क्योंकि न उसमें कोई गुण है, न अलंकार।