पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१२४

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

 

ग्रंथारंभ
काव्य का लक्षण

जिस काव्य के, यश, परम-आनंद, गुरु, राजा और देवताओं की प्रसन्नता आदि अनेक फल हैं, उस काव्य की व्युत्पत्ति दो व्यक्तियों के लिये आवश्यक है। उनमें से एक है कवि—अर्थात् काव्य बनानेवाला और दूसरा है, उससे आनंद प्राप्त करनेवाला—उसके मर्मों को समझनेवाला, सहृदय। सच पूछिए तो, काव्य से आनंद उठाने के लिये, सहृदयता ही मुख्य साधन है। कवि भी यदि सहृदय हुआ (यद्यपि अच्छे कवियों की सहृदयता अनिवार्य है), तो उसे कविता-गत आनंद की प्राप्ति हो सकती है, अन्यथा नहीं। इस कारण, गुण, अलंकार आदि से जिसका निरूपण किया जाता है, वह काव्य क्या वस्तु है—किसे काव्य कहना चाहिए और किसे नहीं—इस बात को, पूर्वोक्त दोनों व्यक्तियों को, समझाने के लिये पहले उसका लक्षण निरूपण करते है।

रमणीय अर्थ के प्रतिपादन करनेवाले—अर्थात् जिससे रमणीय अर्थ का बोध हो, उस शब्द को काव्य कहते हैं।

रमणीय अर्थ वह है, जिसके ज्ञान से—जिसके बार-बार अनुसंधान करने से—अलौकिक आनंद की प्राप्ति हो। यद्यपि