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निर्माता और निबंध का परिचय
मननतरितीर्णविद्यार्णवो जगन्नाथपण्डितनरेन्द्रः।
रसगङ्गाधरनाम्नीं करोति कुतुकेन काव्यमीमांसाम्॥
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मनन तरी तरि विद्या-जलनिधि जगन्नाथ पण्डित-नरनाथ।
"रसगङ्गाधर" नामक काव्या नोवन करत कुतूहल-साथ॥
जिसने मनन-रूपी नौका से विद्यारूपी समुद्र को पार कर लिया है, वह पंडितराज जगन्नाथ, कुतूहल के साथ काव्यों की वह आलोचना कर रहा है, जिसका नाम है "रसगंगाधर"।
शुभाशंसा
रसगङ्गाधरनामा सन्दर्भोऽयं चिरञ्जयतु।
किञ्च कुलानि कवीनां निसर्गसम्यञ्चि रञ्जयतु॥
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रसगङ्गाधर नाम यह ग्रथ सरबदा जय लहहु।
सहज सुभग कविराज-कुल याहि पाइ प्रमुदित रहहु॥
यह "रसगंगाधर" नामक ग्रंथ बहुत समय के—सदा के लिये विजय प्राप्त करे और स्वभाव से ही उत्तम—जिनको उत्तम बनाने के लिये यत्न की आवश्यकता नही, उन कविवरों के समाजों को सुखी करता रहे।