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अलौकिक रत्नों का उत्पादन करनेवाला, मंदराचल का परिश्रम व्यर्थ हो सकता है? अर्थात् इन पंडितों का परिष्कार करना शास्त्र को निरा क्षुब्ध करना है; पर मैंने उसे मथकर, उसमे से, यह मणि निकाली है; अतः उनका परिश्रम निष्फल है और मेरा सफल।


अन्य निबंधों से विशेषता

निर्माय नूतनमुदाहरणानुरूपं
काव्यं मयाऽत्र निहितं न परस्य किञ्चित्।
कस्तूरिकाजननशक्तिभृता मृगेण
किं सेव्यते सुमनसां मनसाऽपि गन्धः॥

धरी बनाइ नवीन उदाहरनन की कविता।
परकी कछु हु छुई न, इहा मैं, पाइ सुकवि-ता॥
मृग कस्तूरी-जननशक्ति राखत जो निन तन।
कहा करत वह सुमन-गन्ध-सेवन हित सुजतन॥

मैंने, इस ग्रंथ में, उदाहरणों के अनुरूप—जिस उदाहरण में जैसा चाहिए वैसा—काव्य बनाकर रक्खा है, दूसरे से कुछ भी नहीं लिया, क्योंकि कस्तूरी उत्पन्न करने की शक्ति रखनेवाला मृग क्या पुष्पों की सुगंध की तरफ मन भी लाता है? अपनी सुगंध से मस्त उसे क्या परवा है कि वह पुष्पों के गंध की याद करे।