पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१२

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इस विषय में हम सबसे पहले अपने परमपूजनीय पितृचरण पंडित श्रीमथुरालालजी चतुर्वेदी का, जो इस समय अनंत सुख का अनुभव कर रहे हैं, स्मरण करेंगे; क्योंकि यह जो कुछ आपके सामने है, वह उन्हीं के अकृत्रिम प्रेम, संस्कृत-शिक्षण, श्रम और हार्दिक आशीर्वाद का फल है।

तदनंतर श्रीमदल्लभाचार्य के प्रधान पीठ पर विराजमान गोस्वामितिलक श्रीगोवर्धनलालजी महाराज और उनके विद्याप्रेमी कुमार श्रीदामोदरलालजी महोदय के निःस्वार्थ अनुग्रह और मेरे विद्यागुरु शीघ्र कवि श्रीनन्दकिशोर शास्त्रीजी के उपकार का स्मरण आवश्यक है; क्योंकि इस अकिंचन का, किशोरावस्था के अनंतर, शिक्षण और रक्षण उन्हीं की सहायता से हुआ है।

इसके बाद हमारे परममाननीय महामहोपाध्याय पं॰ श्रीगिरिधरशर्मा चतुर्वेदीजी का स्मरण अपेक्षित है; क्योंकि रसगंगाधर की अनेक ग्रंथ-ग्रंथियों के शिथिलीकरण में उनका बहुत कुछ हाथ है।

अब यदि इस अवसर पर हम अपने परम सुहृद् काशी-निवासी साहित्यभूषण श्रीसाँवलजी नागर का स्मरण न करें, तो कदाचित् हमारा सा कृतघ्न कोई न होगा, क्योंकि इस पुस्तक का लेखन और प्रकाशन उनके उत्साहदान और निष्काम सौहार्द से बहुत कुछ संबंध रखता है।