पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/११२

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शृङ्गार रस ९३ विरोधी रस के वर्णन की आवश्यकता १३७
करुणरस ९७ रस-वर्णन में दोष १३९
शान्तरस ९७ अनौचित्य १४२
रौद्ररस १०० अनौचित्य से रस की पुष्टि १४६
वीर-रस १०४ गुण १४७
अद्भुत रस ११७ अत्यन्त प्राचीन आचार्यों का मत १५३
हास्यरस ११९ शब्द-गुण १५३
हास्य के भेद १२० श्लेष १५३
भयानक रस १२२ प्रसाद १५४
बीभत्स रस १२३ समता १५५
'हास्य' और 'जुगुप्सा' का आश्रय कौन होता है? १२४ माधुर्य १५५
रसालङ्कार १२५ सुकुमारता १५६
ये 'असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य' क्यों कहलाते हैं? १२६ अर्थव्यक्ति १५६
रस नौ ही क्यों हैं? १२६ उदारता १५७
रसों का परस्पर अविरोध और विरोध १२८ ओज १५८
विरुद्ध रसों का समावेश १२९ कान्ति १५९
अन्य प्रकार से विरोध दूर करने की युक्ति १३४ समाधि १५९
अर्थगुण १६०