पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/११

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लेख-चिह्नों से भी शून्य है, उसमें तो विशेषतः पाराग्राफ तोड़ने का भी परिश्रम नहीं किया गया। यथेष्ट व्याख्या से रहित अशुद्ध और जटिल ग्रंथ को शुद्ध करके उसका यथोचित अनुवाद करने में कितनी कठिनता होती है, उसे वही समझ सकता है, जिसे यह काम पड़ा हो। सो यह भार भी इस तुच्छ बुद्धि पर ही आ पड़ा। पर इसमें कोई संदेह नहीं कि दोनों पुस्तकों के संवाद से हमें संशोधनकार्य में बहुत कुछ सहायता मिली है। तीसरी अड़चन यह थी कि उपर्युक्त भ्रमण के कारण हमें अपेक्षित पुस्तकादि भी नहीं प्राप्त हो सकती थीं; और सुतरां काठियावाड़ में; क्योंकि यहाँ संस्कृत भाषा का बिलकुल प्रचार नहीं है। इसके अतिरिक्त हमारे स्वास्थ्य ने भी समय समय पर अंतराय उपस्थित कर दिया। पर, इन सब अड़चनों के होते हुए भी जहाँ तक हो सका, हमने गड़बड़-घोटाला चलाने की कोशिश नहीं की; इस प्रकार प्रथमानन का यह अनुवाद आप की सेवा में उपस्थित है। इसमें संदेह नहीं कि यदि हमारी परिस्थिति और स्वास्थ्य अच्छे होते तो यह अनुवाद इससे कही अच्छे रूप मे सिद्ध होता। अस्तु, ईश्वरेच्छा।

 

अनुग्राहक

अब अंत मे हम अपनी अनुग्राहक मंडली का स्मरण करके इस कथा को समाप्त करते हैं—