यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[१०६]
का स्पष्टरूपेण विवरण कर दिया गया है। हाँ, इतना कह देना आवश्यक है कि इस तरह से प्रत्येक भाव को पृथक्-पृथक् समझने के लिये उनके भेदक धर्म और कार्य-कारण अन्यत्र नहीं समझाए गए हैं।
इति शुभम्।
वैशाख शुक्ला ८ शुक्रवार संवत् १९८५ |
पुरुषोत्तमशर्मा चतुर्वेदी जयपुर |
ता॰ २७ अप्रैल सन् १९२८ |