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है। रामशोर्म्मा ने अपने प्राकृत कल्पतरु में पैशाची के दो भेद लिखे हैं, (१) शुद्ध और (२) संकीर्ण । शुद्ध के सात और संकीण के चार उपभेद उन्हों ने बतलाये हैं—शुद्ध के सात भेद ये हैं -
(१) मगधपैशाचिका (२) गौड़ पेशाचिका (३) शौरसेनी पैशाचिका ४) केकयपैशाचिका (५) पांचाल पैशाचिका (६) प्राचडपैशाचिका (७) सूक्ष्मभेदपैशाचिका।
(१) भाषाशुद्ध (२) पदशुद्ध (३) अर्द्धशुद्ध (४) चतुष्पद शुद्ध ।
अब से ढाई सहस्र वर्ष पहले विजयकुमार अपने अनुयायियों के साथ सिंहल गया था, और वहां उसने बुद्ध धर्म के साथ आर्य भाषा का भी प्रचार किया था। उसीकी संतान सिंहली है, जो अब तक वहां प्रचलित है। सिंहली का प्राचीन रूप ईस्वो दशवें शतक का है, उसको ‘इलू' कहते हैं। इस सिंहली का प्रभाव मालद्वीपभापा पा भी पड़ा है। इस भाषा में थोड़ा बहुत साहित्य भी है। किन्तु कोई प्रसिद्ध ग्रन्थ नहीं है।
पश्चिमी एशिया एवं यूरप के कई भागों में फिरने वाली कुछ जातियां 'जिप्सी' कहलाती हैं, ये किसी स्थान विशेष में नहीं रहती, यत्र तत्र सकुटुम्ब पर्यटन करती रहती हैं। इनकी भाषा का नाम भी जिप्सी है। ईस्वी पाँचवी शताब्दी में जो प्राकृत रूप आर्यभापा का था, इनकी भाषा उसी की संतान है। यद्यपि भिन्न भिन्न स्थानों में भ्रमण करते रहने और अनेक भाषाभाषियों के संसग से उनके भाषा में बहुत अधिक परिवर्तन हो गया है। परन्तु उनको भापा के शब्द भाण्डार पर आर्यभाषा की छाप लगी स्पष्ट दृष्टिगत होती है।