पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/८१

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सिंध नदी के इस कोहिस्तान के पश्चिम में स्वातनदी का कोहिस्तान है, यहां की प्रधान भाषा भी पश्तो ही है, पर यहां भी अब तक कुछ ऐसी जातियां हैं, जो शिना के आधार पर बनी हुई बोलियाँ बोलती हैं । प्रधान भाषा गरबी, और अन्य भाषायें तोरवाली या तोरवल्लाव और वाश्कारिक हैं। बिडल्फ ने इन बोलियों का भी वर्णन किया है । मैया और गरबी दोनों मिश्रित भाषायें हैं ।

अन्त में यह कह देना आवश्यक है कि प्राचीन पैशाची के बहुत से शब्द और रूप वर्तमान पैशाची की बिबिध शाखाओं में अब तक थोड़े से परिवर्तन के साथ पाये जाते हैं। जैसे कलाशा में ककबक, बेरों में ककोकु, वशगली में ककक इत्यादि, इस शब्द का अर्थ है चिड़िया । वैदिक संस्कृतमें इसको 'कृकवाक कहते हैं । खोआरमें द्रोखम शब्द मिलता है, जो संस्कृत का द्रम है, जिसका अर्थ है चांदो । संस्कृत क्षीर वशगली का शीर है, जिसका अर्थ श्वेत है। संस्कृत का स्वसार खोआर का इस्युसार है, जिसका अर्थ बहिन होता है।

हिन्दूकुश में दो छोटे छोटे राज्य हैं, हुञ्जा और नागर । यहां के रहनेवालों की एक अलग भाषा है, परन्तु यह आर्य भाषा नहीं है । इसका सम्बन्ध किसी भी भाषा के वंश के साथ अब तक नहीं हुआ है । यह भाषा अपने प्राचीन रूप में, वर्तमान पिशाच भाषा बोले जानेवाले देशों में, और बलतिस्तान के पश्चिम में जहां कि अब तिब्बतीवर्मन भाषा बोली जाती है, एक समय में बोली जाती थी। ए अनार्य भाषायें 'वुरूशस्की, 'विद्दल्प, की वूरीश्की और लेतनेट की खजुवा हैं। लगभग कुल वर्त्तमान पिशाच भाषाओं में इसके फुटकल शब्द पाये जाते हैं । जैसे-बर्मी शब्द, चोमार, जिसका अर्थ लोहा है, काश्मीरी के सिवा प्रत्येक वर्तमान पिशाच भाषाओं में बोला जाता है । यह शायद इसी भाषा का प्रभाव है, कि वर्तमान पिशाच भाषा में 'र' अक्षर का विचित्र प्रयोग है। इन सब भाषाओं में यह 'र' अक्षर तालव्य होने की ओर झुकाव रखता है। इस झुकाव की उत्पत्ति वर्तमान पिशाच भाषा से नहीं हुई है । क्यों कि इसका सम्बन्ध केवल इसी भाषा से