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का सब से प्राचीन ग्रन्थ भागवत का अनुवाद है, जो कि ईस्वी चौदहवें शतक में हुआ था। श्री शंकर नामक एक प्रसिद्ध विद्वान् ने यह अनुवाद किया था।
कुछ पहाड़ी भाषायें भी ऐमी हैं कि जिनका सम्बन्ध आर्यपरिवार की भाषा से है। इस प्रकार की भाषायें तीन हैं. और वे पूर्व में नैपाल से लेकर पश्चिम में पंजाब की पहाड़ियों तक फैली हुई हैं। इनकी संज्ञा है (१) पूर्वीय पहाड़ी (२) मध्यपहाड़ी (३) और पश्चिमीय पहाड़ी ।
योगेपियन लोग नेपाली भाषा को पूर्वीय पहाड़ी भाषा कहते हैं. परन्तु यह ठीक नहीं । नेपाल की भाषा का नाम 'नेवारी' है । पूर्वीय पहाड़ी के और भाषाओंका नाम, पार्वतीय, पहाडी भाषा और खसकुरा है। यह 'खस- कुरा, खसों की भाषा है, और नागरी लिपि में लिखी जाती है।
गढ़वाल और कुमायूं के ब्रिटिश जिलों की और गढ़वाल रियासत की भाषा मध्यपहाड़ी कहलाती है । इसकी दो प्रधान शाखायें हैं. कमायूनी और गढ़वाली । इन दोनों भाषाओं में साहित्य बहुत कम है, इनी गिनी पुस्तकें ही इसमें मिलती हैं।
शिमला और उसके आस पास की पहाड़ियों में एक दूसरे से मिलती जुलती कई भाषायें हैं, जिन्हें पश्चिमी पहाड़ी कहते हैं। इन भाषाओं में कोई साहित्य नहीं है । इनका क्षेत्र पश्चिमोत्तर प्रदेश में जौंसार और बावर से प्रारंभ होकर पंजाव की रियासतों सिरमौर, मण्डी, चम्बा. तथा शिमला पहाड़ी, और कुल्हू होते हुये पश्चिममें काश्मीर तक विस्तृत है । इन भाषाओं में, जौंसारी, किउँथली. कुल्हुई, चमिआल्ही आदि प्रधान हैं।
ए पहाड़ी भाषायें राजस्थानी भाषासे मिलती जुलती हैं । इनमें गुजराती भाषा का भी पुट है। कारण इसका यह है कि सोलहवें ईस्वी शतक में और उससे कुछ पहले भी विशेष कर मुसल्मानों के समय में राजस्थान अथवा गुजरात से कुछ विजयिनी जातियां मुख्यतः राजपूत इन प्रदेशों में आये, और वहां की मुण्डा तथा तिब्बती वर्मन आदि जातियों को जीत