दूसरा सुप्रसिद्ध प्रेस प्रयाग का इण्डियन प्रेस है। हिन्दी भाषा के मुद्रण कार्य्य में इसने युगान्तर उपस्थित कर दिया है। इस प्रेस से अनेक बहुमूल्य हिन्दी पुस्तकें निकली और इस समय भी निकल रही हैं। स्वर्गीय बाबू चिन्तामणि घोष ने बंगाली होकर भी हिन्दी भाषा की जो सेवा की है वह प्रशंसनीय और अभिनन्दनीय है। इस प्रेस से 'सरस्वती' नामक मासिक पत्रिका अब तक निकल रही है, जिसका सम्पादन पहले पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी करते थे और अब पं० देवी दत्त शुक्ल सफलता के साथ कर रहे हैं। इस प्रेस का कार्य्य इस समय यद्यपि पहले का सा नहीं है, परन्तु विश्वास है कि वह सावधान होकर फिर पूर्ववत् हिन्दी के समुन्नति-कार्य्य में संलग्न होगा।
तीसरा हिन्दी-उन्नायक बिहार का खड्ग विलास प्रेस है। इस प्रेस की स्थापना स्वर्गीय बाबू गमदीन सिंह ने की थी। उन्हीं के समय में इस प्रेस को यथेष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त हो गयी थी और वह अब तक उनके सुयोग्य पुत्रों राय बहादुर बाबू रामरण विजय सिंह,बाबू सारंगधर सिंह बी० ए० और बाबू रामजी सिंह के सम्मिलित उद्योग से सुरक्षित है । इस प्रेस ने बिहार प्रान्त में हिन्दी भाषा की समुन्नति के लिये जो किया उसकी बहुत कुछ प्रशंसा की जा सकती है। इसने बहुत सी हिन्दो की उपयोगी पुस्तकें अपने प्रेस से निकाली और उनके द्वारा बिहार प्रान्त की जनता को बहुत अधिक लाभ पहुंचाया। अन्य प्रान्तों में भी उनकी पुस्तकों का आदर हुआ है और यह उन लोगों के सफल उद्योग का परिणाम है। बाबू हरिश्चन्द्र और पं० प्रताप नारायण मिश्र जैसे प्रसिद्ध और उद्भट हिन्दी साहित्य सेवियों को कुल पुस्तकों का स्वत्व इस प्रेसही को प्राप्त है और इसने इनके प्रचारका भी उद्योग किया है। बाबू गमदीन सिंह जी के जीवन में जिस प्रकार हिन्दी साहित्य के धुरन्धर विद्वान इस प्रेस की ओर आकर्षित थे। उसी प्रकार अब भी वर्तमान काल के अनेक विद्वानों की सुदृष्टि इस पर है, जिससे यह पूर्ववत् उन्नत दिशा में रह कर अपने व्रत पालन में संलग्न है। हिन्दी और हिन्दू जाति के सच्चे उपासक कतिपय सुन्दर हिन्दी ग्रन्थो के लेखक और प्रचारक बाबू गमदीन सिंह का यह कीर्ति-स्तम्भ है। इसको