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दन अखौरी करते थे। जब तक यह पत्र चला इसने हिन्दी की बड़ी सेवा की ।

आरा नागरी प्रचारिणी सभा जैसी छोटी मोटी और अनेक संस्थायें हिन्दी भाषा की उन्नति के लिये उद्योग कर रही हैं और उसका प्रचार दिन दिन बढ़ा रही हैं जिसके लिये वे अभिनन्दनीय और धन्यवाद योग्य हैं। उन सबका वर्णन करने के लिये यहाँ स्थान नहीं है अतएव मैं उन सबका उल्लेख न कर सका किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है, कि मैं उन्हें उपयोगी नहीं समझता अथवा उपेक्षा को दृष्टि से देखता हूं।

२-कतिपय प्रसिद्ध प्रेस

संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ प्रसिद्ध प्रेस अथवा मुद्रण यन्त्रालय ऐसे हैं जिनसे हिन्दी भाषा की समुन्नति और विस्तार में बहुत बड़ी सहायता मिली है! मैं उनको चर्चा भी कर देना यहां आवश्यक समझता हूं। युक्त प्रान्त में दो बहुत बड़े प्रेस ऐसे हैं जिन्होंने हिन्दी पुस्तकों का प्रकाशन प्रकाण्ड रूप में कर के अच्छी कीर्ति अर्जन की है और स्वयं लाभवान हो कर उसे भी विशेष लाभ पहुँचाया है। पहला है लखनऊ का नवल किशोर प्रेस। इसने प्राचीन नवीन अनेक हिन्दी-ग्रंथो को प्रकाशित और प्रचारित कर उसको विशेष ख्याति प्रदान की है। मैं यह स्वीकार करूँगा कि उसका मुद्रण-कार्य अधिक संतोष जनक नहीं है, फिर भी यह कहने के लिये बाध्य हूँ कि उसने सब प्रकार के ग्रन्थों के प्रकाशन में अच्छी सफलता लाभ की है। अब उसकी दृष्टि मुद्रण की ओर भी गयी है। आशा है, उसका मुद्रण-कार्य भी भविष्य में यथेष्ट उन्नति लाभ करेगा। इस प्रेस से आज कल 'माधुरी' नामक एक सुन्दर मासिक पत्रिका निकल रही है। पहले इसका सम्पादन पं० कृष्णबिहारी मिश्र बी० ए० एल० एल० बी० और मुंंशी धनपति राम बी० ए० करते थे । इस कार्य्य को इस समय सफलता पूर्वक पं० राम सेवक त्रिपाठी कर रहे हैं वास्तव बात यह है कि इस पत्रिका से इस प्रेस का गौरव है ।।