एक प्रभावशाली आदर्श उपस्थित करना उसका बड़ा उत्साह बर्द्धक कार्य है। उसने एक विद्यापीठ की स्थापना भी की है। आशा है, उसका भविष्य भी उज्ज्वल होगा। इधर उसमें कुछ शिथिलता आ गयी है किन्तु विश्वास है कि श्रीयुत पं० रमाकान्त मालवीय बी० ए० एल० एल० वी० के प्रधान मंत्रित्व में और श्रीयुत बाबू पुरुषोत्तम दासटंडन एम० ए० एल० एल० वी० के अधिक सतर्क और सावधान हो जाने से यह शिथिलता दूर होगी और फिर पूर्ववत् वह अपने कार्य्यों में तत्पर हो जावेगा ।।
३-तीसरी संस्था हिन्दुस्तानी एकेडेमी है। इसकी स्थापना युक्त प्रान्त की सरकार ने की है। इसमें युक्त प्रान्त के हिन्दी भाषा और उर्दू के अधिकांश विद्वान् सम्मिलित हैं। सर तेजबहादुर सप्रू और सर मुहम्मद सुलेमान साहब जैसे गौरवशाली पुरुष इसके सभापति और प्रधान पदाधिकारी हैं। इसका कार्य्य-संचालन भी अब तक संतोष जनक रीति से हो रहा है। इस संस्था से थोड़े दिनों में जैसे उत्तमोत्तम ग्रंथ प्रत्येक विषयों के निकले हैं,उनसे उसकी महत्ता और कार्यकारिणी शक्ति को बहुत बड़ा श्रेय मिलता है। उसने हिन्दी और उर्दू की जो त्रैमासिक पत्रिकायें निकाली हैं वे भी उसको गौरवित बनाती हैं और यह विश्वास दिलाती हैं कि इसके द्वारा हिन्दी और उर्दू का भविष्य आशामय होगा और सम्मिलित रूप से उनकी यथेष्ट समुन्नति होगी। इसी स्थान पर मैं एक बहुत ही उपयोगिनी संस्था की चर्चा भी करना चाहता हूं। वह है कलकत्ते की एकलिपि-विस्तार-परिषद। दुःख है कि यह संस्था अब जीवित नहीं है। परन्तु अपने उदय-काल में इसने हिन्दी के भाग्योदय की पूर्व सूचना दी थी। हिन्दी-संसार को इसने ही पहले पहले यह बतलाया कि यदि कोई लिपि भारत व्यापिनी हो सकती है तो वह नागरी लिपि है। इस परिषद के संस्थापक जस्टिस शारदाचरण मित्र थे जो अपने समय के बड़े प्रसिद्ध पुरुष थे। इनके सहकारी थे पंडित उमापतिदत्त शर्मा और बाबू यशोदा नन्दन अखौरी। इस परिषद से देवनागर' नामक एक बहु-भाषी पत्र निकलता था जो नागरी लिपि में मुद्रित होता था। यह बड़ा ही प्रभावशाली और सुन्दर पत्र था। इसका सम्पादन उक्त बाबू यशोदानं-