ग्रंथों का अनुवाद हिन्दी में प्रस्तुत कर देने के लिये, अनेक कृतविद्यों की दृष्टि आकर्षित है। इस विषय में उल्लेख योग्य कार्य पं॰ रूप नारायण पाण्डेय और बाबू रामचन्द्र वर्मा का है। इन दोनों हिन्दी प्रेमियों का विशिष्ट कार्य्य है, इन लोगों ने अनेक ग्रंथ रत्नों का अनुवाद हिन्दी भाषा भाण्डार को अर्पण किया है। आजतक इन सज्जनों का उद्योग शिथिल नहीं हैं। वे पूर्ण उत्साह के साथ अब भी अपने कर्त्तव्य पालन में रत हैं। पण्डित रूप नारायण ने अधिकतर अनुवाद उपन्यासों ही का किया है। परन्तु वर्मा जी का अनुवाद सब प्रकार की पुस्तकों का है, उन्होंने इस विषयमें विशेष ख्याति प्राप्त की है। पंडितजी की अन्य विशेषताओं का उल्लेख मैं पहले कर चुका हूं।
बाल-साहित्य।
बाल-साहित्य भो साहित्य का प्रधान अंग है। हर्प है कि इधर भी कुछ सहृदयों की दृष्टि गयी है। 'बाल सखा' वानर, 'बालक, 'खिलौना' आदि मासिक पत्र इसके प्रमाण हैं। बाल-साहित्य सम्बन्धी रचनाएं भी अब अधिक होने लगी हैं। कुछ पुस्तकें भी निकली हैं। पं॰ सुदर्शनाचार्य्य बी॰ ए॰, बाबू श्रीनाथ सिंह, बाबू रामलोचन शरण, श्री रामवृक्ष शर्म्मा बेनी पुरी आदि ने बाल-साहित्य पर सुन्दर रचनायें की हैं जो इस योग्य हैं कि आदर की दृष्टि से देखी जायें। इन लोगों की कुछ रचनाएं पुस्तकाकार भी मुद्रित हुई हैं। पं॰ रामलोचन झा एम॰ ए॰ की रचनाएं भी इस विषय में प्रशंसनीय हैं। इन्होंने पाँच किताबें लिखी हैं जो बिहार प्रान्त में आदर के साथ गृहीत हुई हैं।
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संघटित संस्थायें
यों तो पंजाब, युक्त प्रान्त, बिहार एवं मध्य प्रदेश में हिन्दी की समुन्नति के लिये बहुत सी संस्थायें काम कर रही हैं, परन्तु विशेष उल्लेख योग्य तीन संस्थायें ही हैं--[१] नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस; [२]हिन्दी साहित्य-सम्मेलन. प्रयाग, [३] हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद।