पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/७२२

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भाव, और विचार तीनों दृष्टियों से बड़ी उपयोगी है । उसमें योरोप के स्थानों एवं जापान इत्यादिक के कहीं कहीं बड़े मार्मिक वर्णन हैं, जिनके पढ़ने से देशानुराग हृदय में जाग्रत् होता है और जातीयताका महत्व समझ में आता है। इसमें अनेक स्थानों के बड़े मनोहर चित्र हैं जो बहुत आकर्षक हैं । ग्रंथ संग्रहणीय और पठनीय है। इसी सिलसिले में मैं पंडित रामनारायण मिश्र बी० ए० रचित कतिपय भूगोल-सम्बन्धी ग्रंथोंकी चर्चा भी कर देना चाहता हूं। यद्यपि यह पृथक विषय है, परन्तु भ्रमण का सम्बन्ध भी भूगोल से ही है। इसलिये यहों उनको पुस्तकों के विषय में कुछ लिखना आवश्यक जान पड़ता है। पंडितजी ने भूगोल-सम्बन्धो दो सोन पुस्तकें लिखी हैं जो अपनी विषय-नवीनता के कारण आदरणीय हैं। उन्हों ने इन ग्रंथों को खोज और परिश्रम से लिखा है । इसलिये वे अवलोकनीय हैं। उनमें मनोरंजन को सामग्री तो है ही, कतिपय देश- सम्बन्धी आनुषंगिक ज्ञान-बद्ध न के साधन भी हैं।

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अर्थ-शास्त्र ।

‘अर्थस्य पुरुषो दासो' प्रसिद्ध सिद्धान्त वाक्य है । वास्तव में पुरुष अर्थ का दास है। सर्वेगुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति' और 'धनात धर्म ततः सुखम्' आदि वाक्य भी अथ की महत्ता प्रगट करते हैं । सांसारिक चार महान् पदार्थों में अर्थ का प्रधान स्थान है। ऐसी अवस्था में यह प्रगट है कि साहित्य में अर्थ-शास्त्र का महत्व क्या है। हमारा प्राचीन संस्कृत का कौटि- लीय अर्थ-शास्त्र प्रसिद्ध है। अंगरेज़ो भाषा में इस विषय के अनेक बड़े सुन्दर ग्रंथ हैं । हिन्दी भाषा में पूर्ण योग्यता से लिखे गये वस सुन्दर ग्रंथा का अभाव है। फिर भी वत्तमानकाल में कुछ ग्रंथों को रचना हुई है। सबसे पहले पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी ने अर्थशास्त्र पर 'सम्पत्ति-शास्त्र नामक एक ग्रंथ लिखा। इसके बाद श्रीयुत प्राणनाथ विद्यालंकार, पं० दयाशंकर दुबे एम० ए० ओर श्रीयुत भगवानदास केला ने भी अर्थशास्त्र पर लेग्वनी चलायी। इनमें सबसे उत्तम ग्रन्थ प्राणनाथ विद्यालंकार का है।