पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/६९८

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हैं, तो हमको हवा शब्द को लेना ही पड़ेगा, चाहे वह फारसी शब्द भले ही हो। क्यों कि हवा के स्थान पर दूसरा शब्द वायु या पवन आदि ग्रहण करने से न तो भाव स्पष्ट होगा, न व्यंग सफल होगा, और न मुहावरा मुहावरा रह जायगा। इन बातों पर दृष्टि रख कर हिन्दो भाषा में स्वभाव तया वही प्रणाली गृहीत हुई और चल पड़ी, जो उचित थो। आज दिन भो इसो प्रणाली का बोलबाला है। सब भाषाओं में गंभीर विषयों की भाषा उच्च होती है और साधारण विषयों की चलती। दार्शनिक, वैज्ञानिक ओर इसी प्रकार के अन्य विषय, गहन और विवेचनात्मक होते हैं, इस लिये उनके लिये प्रौढ़ भाषा ही बांछनीय होती है। जो विषय सहज हैं, जिन में आपस के व्यवहारों, बर्तावों, अथवा घरेलू बातों की चर्चा होगी, उसको सरल और बोलचाल की भाषा में लिखना ही पड़ेगा, अन्यथा उनकी भाव व्यंजना यथार्थ गति से न हो सकेगी। हिन्दी भाषा के उन्नति काल के विद्वानों ने इन बातों पर दृष्टि रख कर ही उसकी शैलियों की स्थापना को, जिसका विशेष परिमार्जन इस काल में हुआ।

प्रान्तीय भाषाओं के शब्दों और क्रियाओं का त्याग जिनमें ब्रजभाषा भी सम्मिलित है, अधिकतर संस्कृत तत्सम शब्दों के प्रयोगों द्वारा ही संभव था, इस लिये हिन्दी को वर्तमान शैली में संस्कृत तत्सम शब्दों का वाहुल्य है। यह प्रणाली ग्रहण करने से हो भाषा ग्रामीण शब्दों से सुरक्षित हुई। अरबी फ़ारसी शब्दों को भरमार भी इसो से दूर हुई । अतएव इस प्रणाली का ग्रहण युक्ति संगत था। उसका हिन्दी भाषा और संस्कृत के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक विद्वानों द्वारा स्वीकृत हो जाना भी उसकी उपयोगिता का सूचक है । यह मैं अवश्य कहूँगा, कि न तो संस्कृत शब्दों का भरमार होना उचित है न फारसी और अरबी के प्रचलित शब्दों का आग्रहपूर्वक त्याग, क्योंकि ऐसा करने से भाषा दुर्बोध हो जाती है, जो उसकी उन्नति के लिये वांछनीय नहीं। यह उद्योग सरकारी अधिकारियों और जनता के कतिपय अग्रगन्ताओं द्वारा पहले से होता आया है, कि जहाँ तक संभव हो. हिन्दी भाषा की शैलो ऐसी हो, जो बोलचाल के