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२२-इस काल में हिन्दी भाषा में अनेक पत्र और पत्रिकायें भी निकली जिससे इसके प्रचार में अधिकतर वृद्धि हुई। इस समय के पहले भी कुछ पत्र पत्रिकायें निकली थीं, जिनमें बनारस अरनवार, कविवचन सुधा. और हरिश्चन्द्र चन्द्रिका का नाम विशेष उल्लेख योग्य है। बाबू हरिश्चन्द्र के सहयोगियों में से लगभग सभी ने एक एक पत्र अथवा पत्रिका अवश्य निकाली। इसकी चर्चा में कर चुका हूं । इस काल में इस कार्य की मात्रा बहुत बढ़ गई थी, सब प्रकार के पत्र अधिकता से इस समय ही निकले। कालाकांकर का दैनिक 'हिन्दोस्तान' पं. गोपीनाथ संपादित लाहोर का 'मित्र विलास' पं० सदानन्द मिश्र सम्पादित सार सुधानिधि'. पं० दुर्गा प्रसाद मिश्र सम्पादित 'उचित वक्ता', सम्पादका चार्य पं० रुद्रदत्त सम्पादित 'आर्यावत्त', उदयपूर का 'सजन कोति सुधाकर', पं० देवकी नंदन सम्पादित प्रयाग का प्रयाग समाचार' आदि उनमें विशेष उल्लेखनीय हैं। उस समय जो धार्मिक पत्र पत्रिकायें निकली थीं. उन्होंने भी हिन्दी प्रचार सम्बन्ध में विशेष काय्य किया था. क्योंकि जनता की मचि इधर भी विशेष आकर्पित थी। इनमें कलकत्ता से निकलने वाला 'धम दिवाकर, बड़ा सुन्दर पत्र था. इसका सम्पादन पं० देवी सहाय करते थे। इसमें ऐसे सारगभ, संयत एवं मामि क लेख निकलते थे, जिनको बहुत कुछ प्रशंसा की जा सकतो है। इसो समय 'सरस्वती' भी निकली, जो पं० महावीर प्रसाद द्विवेदी के द्वारा सम्पादित होकर हिन्दी गद्य के विशेष संशोधन का कारण बनी । उस समय के निकले पत्र पत्रिकाओं में अधिकांश अव लुप्त हो चुके हैं, परन्तु उनका प्रचार-कार्य और उनका सामयिक प्रभाव किसी प्रकार भूला नहीं जा सकता।।
अब तक जो लिखा गया और जितने अवतरण दिये गये उनके देखने से यह ज्ञात होता है कि उन्नतिकाल से प्रचार काल को भाषा अधिक परि-माजित है । स्थान के संकोच के कारण मेंप्र धान पत्र सम्पादकों की लेख-माला में से थोड़े अवतरण भी न उठा सका, विशेप कर पं० सदानन्द और पं० दुर्गा प्रसाद मिश्र आदि के, यदि उठा पाता तो प्रस्तुत विषय और स्पष्ट हो जाता। उन्नति काल के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक 'आचार्य' हैं. उन्होंने