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बड़ा विचित्र ग्रंथ है। वास्तव बात यह है कि पं०. जी साहित्य कला के पारंगत थे और हिन्दी भाषा पर पूर्ण अधिकार रखते थे। उनके रचे संस्कृत और हिन्दी भाषा के अनेक ग्रंथ हैं। उनकी एक गद्य रचना देखिये:--
ईमान बेचने वाला - सभो जात) ईमान ले ईमानः टकेे सेर ईमान, टके पर हम ईमान बेचते हैं। ईमान ही क्या, जातपाँत कुलकानि धर्म कर्म बेद पुरान कुरान बाइबिल सत्य ऐकमत्य गुन गौरव इज्जत प्रतिष्ठा मान ज्ञान इत्यादि सर्वस टके सेर !! एक टका दो हम तुमी को डिमो देते हैं टकेपर हम अदालतमें तुमारो ऐसो कहैं, टका खोलकर हमारी झोली में रक्खो, अभी तुम्हें के० सो० एस० आई० बल्कि ए० बो० सी० डो० इत्यादि छब्बीसों अक्षर और वर्णमाला भरका लम्बा पोंछ बढ़ा देवें । महाअंधेर नगरी। १७-इस प्रचार काल में दो बड़े उत्साही युवक हिन्दी संसार के सामने आते हैं. एक हैं बाबू राधाकृष्ण दास जो स्वर्गीय भारतेन्दु जी के फुफेरे भाई थे और दूसरे हैं बाबू रामकृष्ण वर्मा । बाबू राधाकृष्ण दास ने गद्य पद्य दोनों लिखा है और उसमें अच्छी सफलता पाई है। उन्हों ने मारतेन्दु जी के चरणों में बैठ कर हिन्दी अनुराग की शिक्षा पाई थो, उनकी गद्य पद्य शैली का अनुशोलन किया था, इस लिये उनको रचनाओं एवं उनके हिन्दी प्रेम को झलक उनमें अधिक मात्रा में पाई जाती है। उनमें देश प्रम भो था, और मातृभूमि का प्यार भी, अतएव उनकी कृतियों में उनके इन भावों का रङ्ग भी देखा जाता है। उन्हों ने भारतेन्दु जी की एक छोटो सो जोवनी लिखो है, जिसमें उनके जोवन से सम्बन्ध रखने वाली अनेक बातों पर प्रकाश डाला है। एक छोटी पुस्तिका में उन्हों ने यह प्रमाणित करने की चेष्टा को है कि कविवर बिहारी लाल आचार्य केशवदास के पुत्र थे. इस ग्रन्थ में उनको विषय प्रति-पादन शैली देखने योग्य है। उनका लिखा हुआ प्रताप नाटक भी अच्छा है. उसकी रचना ओजस्विनो और भावमयो है। वे बनारस की नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापकों में अन्यतम हैं। उनका कुछ गद्यांश देखिये:-