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अच्छा किया छिपा छलना से ममता पूर्ण खिलौना।
मिथ्या सुख विस्मृति को अपनी ओर दिलाया ध्यान।
सर्वशून्य जीवन का तृ है आशामय आधार।
तेरी निर्ममता में है करुणा का छिपा प्रमाण।

५- बाबू सत्यप्रकाश एम० एस० सी० की एक ही पुस्तक निकली है उसका नाम है प्रतिबिम्ब किन्तु उस एक ही पुस्तक से उनकी सरस हृदयता का पता चलता है। उसमे जितनी रचनायें हैं परिमार्जित रुचि की हैं और यह बतलाता हैं कि उनका लेखक चिन्ताशील और कवि-कर्म्म का मर्मज्ञ है। उनकी रचनामें प्रवाह है और मधुरता भी। उन्होंने अपनी रचनामें जटिलता नहीं आनेदी, यह प्रशंसा की बात है। उनके कुछ पद्य दखियेः-

सान्त बना कर मुझ को नट वर का हो जाना परम अनन्त।
निर्जन बन में मुझे छोड़ कर भट काना जीवन पर्यंत।
संख्यातीत रुप धारण कर बहला कर भग जाना।
मेरी फिर इस विकट व्यथा पर कभी कभी मुसकाना।
लीला यह सबज्ञ शक्य की उसके यदि येही व्यापार।
तो फिर कैसे सान्त पथिक का हो सकता है अब उद्धार।

६- श्रीमती महादेवी वर्म्मा बी० ए० पहली महिला हैं जिन्होंने छायावाद की रचना प्रारम्भ की है। स्त्री हृदय में जो स्वाभाविक कोमलता होती है, इनकी रचनाओं में वह पायी जाती है। स्त्री-सुलभ भावो का चित्रण यथार्थ रीति से स्त्री ही कर सकती है। इनके पद्यों को पढ़कर यह बात असंदिग्ध हो जाती हैं। उनमें स्थान स्थान पर जटिलता है, किन्तु मधुर कोमलकान्त पदावली में वह छिप जाती है। इनके कोई कोई पद्य इतने भावमय है कि यह स्वीकार करना पड़ता है कि उनमें भावुकता की मात्रा यथेष्ट है। उनके कुछ पद्य देखिये:-

कहीं से आयी हूँ कुछ भूल।
रह रह कर आतीसुधि किसकी, रुकतीसी गति क्योंजीवनकी
क्यों अभाव छाये लेता, विस्मृति सरिता के कूल।