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जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित रे अति सुख से।
दुख-सुख से औ सुख-दुख से
अविरत दुख है उत्पीड़न।
अविरत सुख भी उत्पीड़न
सोता जगता जग-जीवन।
यह साँझ उषा का आँगन
आलिंगन विरह मिलन का।
चिरहास अश्रु मय आनन
रे इस मानव जीवन का।


याचना ।

बना मधुर मेरा जीवन

नव नव सुमनों से चुन चुन कर
धूल सुरभि मधु-रस हिम कण।
मेरे उरकी मृदु कलिका में
भरदे करदे विकसित मन।
बना मधुर मेरा भाषण
वंशी से ही करदे मेरे सरल प्राण औ सरस बचन।
जैसा जैसा मुझको छेड़े बोलूं और अधिक मोहन।
जो अकर्ण अहि को भी सहसा करदे मंत्रमुग्ध नतफन।
रोम रोम के छिद्रों से मां फूटे तेरा राग गहन।
बना मधुर मेरा तन मन