पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५९४

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इसी स्थान पर मैं ठाकुर गुरु भक्त सिंह बी० ए०, एल० एल० बी० की चर्चा भी आवश्यक समझता हूं। आप एक होनहार सुकवि हैं। आप की रचनाएं प्रकृति-निरीक्षण सम्बन्धिनी बिल्कुल नये ढंगकी होती हैं। आपने अंगरेज़ी कवि वर्ड् सवर्थ का मार्ग ग्रहण किया है। प्राकृतिक छोटे से छोटे दृश्यों और पदार्थों का वर्णन वे बड़ी सहृदयता के साथ करते हैं। आप का भविष्य उज्ज्वल है। आप ने 'सरस सुमन' और 'कुसुम कुंज' नामक जिन दो ग्रंथों की रचना की है वे सरस और सुंदर हैं।

आज कल हिन्दी-संसार में छाया-वाद की रचनाओं की ओर युवक दल की रुचि अधिकतर आकर्षित है। दस-बारह बर्ष पहले जो भावनायें कुछ थोड़े से हृदयोंमें उदित हुई थीं, इन दिनों वे इतनी प्रबल हो गयी हैं कि उन्हीं का उद्घोष चारों ओर श्रुति-गोचर हो रहा है। जिस नवयुवक कवि को देखिये आज वही उसकी ध्वनि के साथ अपना कण्ठस्वर मिलाने के लिये यत्नवान है। वास्तव बात यह है कि इस समय हिन्दी भाषा का कविता-क्षेत्र प्रति दिन छायावाद की रचना की ओर ही अग्रसर हो रहा है। इस विषय में वाद-विवाद भी हो रहा है, तर्क-वितर्क भी चल रहे हैं, कुछ लोग उसके अनुकूल हैं, कुछ प्रतिकूल। कुछ उसको स्वर्गीय वस्तु समझते हैं और कुछ उसको कविता भी नहीं मानते। ये झगड़े हो, किन्तु यह सत्य है कि दिन दिन छायावाद की कविता का ही समादर बढ़ रहा है। यह देख कर यह स्वीकार करना पड़ता है कि उसमें कोई बात ऐसी अवश्य है जिससे उसकी उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है और अधिक लोगों के हृदय पर उसका अधिकार होता जाता है।

संस्कृत का एक सिद्धान्त है- 'समयमेव करोति बलावलम्'। समय ही बलप्रदान करता है और अबल बनाता है। मेरा विचार है कि यह समय क्रान्ति का है। सब क्षेत्रों में क्रान्ति उत्पन्न हो रही है तो कविता क्षेत्र में क्रान्ति क्यों न उत्पन्न होती? दूसरी बात यह है कि आज कल योरोपीय विचारों; भावों और भावनाओं का प्रवाह भारतवर्ष में बह रहा है। जो कुछ विलायत में होता है उसका अनुकरण करने की चेष्टा यहां