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हंसता है कोई रोता है जिसका जैसा मनहोता है
सब कोई सुध बुधखोता है क्या विचित्र हैं बोल।
तुम्हारी वीणा है अनमोल।
इसे बजाते हो तुम जबलौं नाचेंगे हम सबभी तबलौं
चलने दो न कहो कुछ कबलौं यह क्रीड़ा-कल्लोल।
तुम्हारी वीणा है अनमोल।

८—बाबू सियागम शरण गुप्त वाबू मैथिला शरण गुप्त के लघुभ्राता हैं। वे भी सुन्दर कविता करते हैं। और वास्तव में अपने ज्येष्ट भ्राता की दूसरी मूर्ति हैं। वे उनके सहोदर तो हैं ही सप्तान-हृदय भी हैं। उनकी रचना की विशेषता यह है कि उनकी पदावली कोमल एवं कान्त होती है। इस विषय में वे अपने बड़े भाई से भी बड़े हैं। उनको रचना में मार्मिकता के साथ मधुरता भी होती है। उन्होंने पाँच चारपद्य-ग्रंथों की रचना की है। उनकी भी समस्त रचनायें खड़ी बोली ही में हैं। उनकी रचनायें थाडी भलेही हों, परन्तु खड़ी बोली की शोभा हैं। उनके कुछ पद्य देखिये :—

जग में अब भी गूंज रहे हैं गीत हमारे।
शौर्य वीर्य्य गुण हुये न अब भी हमसेन्यारे।
रोम मिश्र चीनादि काँपते रहते सारे।
यूनानी तो अभी अभी हमसे हैं हारे।
सब हमें जानते हैं सदा भारतीय हम है अभय।
फिर एक बार हे विश्व तुमगाओ भारतकी विजय।

९—पंडिन लोचन प्रसाद पाण्डेय मध्य प्रान्त के प्रसिद्ध कवि हैं। आपने छोटी बड़ी पचीस तीस गद्य पद्य-पुस्तकें लिखी हैं। आप उड़िया भाषा में भी कविता करते हैं। मध्यप्रान्त जैसे दूर के निवासी हो कर भी उन्होंने खड़ी बोलचाल में सरस रचनायें की हैं। उनकी रचनाओं का आदर उनके प्रान्त