उनके प्रधान ग्रंथ ये ही दो हैं। जो इस योग्य हैं कि उन्हें खड़ी बोली के कविता-क्षेत्र में एक उल्लेख-योग्य स्थान प्रदान किया जावे। उनके कुछ पद्य देखियेः--
इच्छा हमें नहीं है भगवन् हो सम्पत्ति हमारे पास ।
नहीं चाहिये प्रासादों का वह विलास मय सुखद निवास ।
सोवें सूखो तृण शय्या पर कर फल पत्तों पर निर्वाह ।
पर समता का हृदय भूमि पर सञ्चालित हो प्रेम प्रवाह ।
दृष्टि हमारो धुंधली होकर धोखा कभी न दे सर्वेश ।
भ्रातृ भाव के शीशे में से देखें वन्धुवर्ग के क्लेश।
पतिता जन्म भूमि के हित हो बच्चा बच्चा बीर बराह ।
रुधिर रूप में उमड़े अच्युत हृनिर्झर से प्रेम प्रवाह ॥२॥
६--पंडित रामनरेश त्रिपाठी एक प्रतिभावान पुरुप हैं । उनको समस्त रचनाओं में कुछ न कुछ विशेषता पायो जाती है। यह उनकी प्रतिभा का हो फल है। उनकी लेखनी आदि से ही खड़ी बोलो की सेवा में गत है। उन्होंने दो खण्ड काव्य खड़ी बोली में लिखे हैं। दोनों सुन्दर हैं और सामयिकता पूर्णतया उनमें विराजमान है। उनकी भाषा परिमाजित और सुन्दर है। खड़ो बोली का विशेष आदर्श सामने उपस्थित न होने पर भी उन्होंने उसका ग्चना करने में जितना सफरता लाभ की है वह कम नहीं है। उनको रचनायं भावमयी हैं और उनमें आकर्षण और मार्मि- कता भी है। उन्हों ने कविता-कौमुदी' नामक ग्रन्थ माला का संकलन कर और ग्रामगीत' नामक एक सुन्दर संग्रह प्रस्तुत कर हिन्दी भाषा की अच्छी सेवा को है । ऐमो रचनायें अथवा कवितायें जो देश में प्रचलित हैं पर्वोत्सवों पर गायी जाती हैं विवाह और यज्ञोपात आदि के अवसरों पर स्त्रियों के कण्ठों से सुनी जाती हैं, या जिनक ग्रामीण जन श्रुति परम्परा से स्मरण सावते आये हैं. उनके उद्धार को उनके प्रवृत्ति आदरणीय है। इस प्रकार को रचनाओं में सरसता, हृदय-ग्राहिता