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ममता से भरी हरी बाँह की छाँह
पसार के नीड़ बसाती जहाँ;
मृदु वाणी मनोहरवर्ण अनेक
लगा कर पंख उड़ाती जहाँ;
उजली कँकरीली तटी में फंसी
तनु धार लटो बल खाती जहाँ;
दल राशि उठो खरे आतप में
हिल चंचल औंध मचाती जहाँ;
उस एक हरे रंग में हलकी गहरी
लहरी पड़ जाती जहाँ;
कल कवुरता नभ की प्रतिबिम्बित
खंजन में मन भाती जहाँ;
कविता वह हाथ उठाये हुए।
चलिये कविवृद बुलाती वहाँ।

५--पंडित गोकुलचन्द्र शर्मा एम ए. उन चुपचाप काय्य करनेवालोंमें हैं जो ख्याति के पीछे न पड़ कर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। किमी जाति के उत्कर्ष और सभ्यता का परिमाजिन रूप से निष्पन्न करने के लिये महापुरुषों के चरित्रों और जीवनियों को बड़ा आवश्यकता होती है। विशेष कर उस अवस्था में जब देश और समाज को प्रवृत्ति राष्ट्रीयता की ओर आकर्षित हो। खड़ा बोलो की कविता के उत्थान के समय यदि किसी सुकवि को दृष्टि इयर आकर्षित हुई तो वे पं० गोकुलचन्द्र शर्मा हैं । उनके गांधी गौरव' तपस्वो निलक' नामक दो ग्रंथ महापुरुषांक इतिवृत्तके रुप में लिखे गये हैं जो सामयिकता के आदर्श उपहार हैं। इन दोनों पंथों की जैसी उत्तम और परिमार्जित भाषा है वैसी ही विचारशैली और भाव-प्रवीणता। उन्होंने ओर भो छोटे मोटे गद्य-पद्य-ग्रंथ लिखे हैं परंतु