पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/५६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५५२)

छाई रहती है बराबर
भूमि तल पर चाँदनी।
सेत सारी युक्त प्यारी
की छटा के सामने।
जँचती है ज्यों फूल के
आगे हो पीतर चाँदनी।
स्वच्छता मेरे हृदय की
देख लेगी जब कभी।
सत्य कहता हूं कि कँप
जायेगी थर थर चाँदनी।
नाचने लगते हैं मन
आनन्दियों के मोद से।
मानुषी मन को बना
देती है बन्दर चाँदनी।
भाव भरती है अनूठे
मन में कवियों के अनेक।
इनके हित हो जाती है
जोगी मछन्दर चाँदनी।
वह किमी की माधुरा
मुसकान की मनहर छटा।
'दीन' को सुमिरन करा
देती है अकसर चाँदनी।
२— होमर जो यूनान का कवि आदि कहाया।
उसने भी सुयश बीरों का है जोश से गाया।