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कुछ कुछ मोहें समझ जोआई।
एक जा ठहरी मोरी सगाई।
आवन लागे बाम्हन नाई।
कोई ले रुपया कोई ले धेली।
व्याह का मेरे समाँ जब आया।
तेल चढ़ाया मढ़ा छवाया।
सालू सूहा सभी पिन्हाया।
मेंहदी से रँग दिये हाथ हथेली।
सासरे के लोग आये जो मेरे।
ढोल दमामे बजे घनेरे।
सुभ घड़ी सुभ दिन हुये जो फेरे।
सइयां ने मोहें हाथ में लेली।

जफ़र

२— यारो सुनो ए दधि के लुटैया का बालपन।
औ मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन।
मोहन सरूप नृत्य करैया का बालपन।
बन बन में ग्वाल गौएं चरैया का बालपन।
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन।
क्या क्या कहूं मैं कृष्ण कन्हैया का बालपन।
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे।
जोती सरूप कहिये जिन्हें सो वो आप थे।

नज़ीर

परंतु, हम देखते हैं कि इंशा अल्ला खां ठेठ हिंदी लिखने का प्रण काकं भी अपनी रानी 'केतकी' को कहानी में निम्न लिखित पद्यों को लिखते हैं :—