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फैली दोप दीप दीप दोपति दिपति जाकी
दीप मालिका की रही दीपति दबकि मी।
परत न ताब लखि मुखमहताब
जब निकसी सिताब आफताब के भभक सो।
२-मानसी पूजामयी पजनेस
मलेछन हीन करी ठकुराई ।
रोके उदोत सबै सुर गीत
बसेरन पै सिकराली बसाई।
जानि परै न कला कछु आज की
काहे सखी अजया इकल्याई ।
पोखे मराल कहो केहि कारन एरो
भुजंगिनी क्यों पुमवाई ।

पजनेस की रचना पदमाकर का रचना में सवथा विपरीत है । जेसो हो वह सरस. मधुर और प्रसाद गुणमयो है वेसो ही इनकी रचना जटिल परुप और अस्पष्ट है। किन्तु इनकी प्रसिद्धि ऐसी ही रचनाओं के कारण हुई है|

महाराज मानसिंह अवध नरेश थे। नीतिज्ञता गुणज्ञता, महदयता. उदारता. भावुकता अथच वदशिता के लिये प्रसिद्ध थे। आप के दरबार में कवियों का बड़ा सम्मान था. क्योंकि उनमें कवि-कम्म की यथार्थ परख थी। वे स्वयं भी बड़ी सुन्दर कविता करते थे। कविता में अपना नाम द्विजदेव' लिखते थे। वे अवधी की गाद में पले थे, परन्तु कविता टकसाली ब्रजभाषा में लिखते हैं थे। इस मरमता में पदविन्याम करते थे कि कविता पंक्तियों में मोती पिगे देते थे। जमी सुन्दर ध्वनि होती थी वैसी ही सुन्दर व्यंजना। वास्तव बान यह है कि इनकी कविता भाव प्रधान है इसी से उसमें हृदय ग्राहिता भी अधिक है। केवल एक ग्रन्थ