पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४९

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से इसे मागधी के नाम से पुकारने लगे, क्योंकि पालि वुद्ध वचन था, और भगवान बुद्ध ने मगध में अपने जीवन का बहुत अंश बिताया। इस कारण वुद्ध वचन या पालि से मगध का सम्वन्ध सोचकर उसका नाम मागधी रखा। सिंहल से ब्रह्मदेश, तथा श्याम और कम्बोज में यह पालि भाषा फैली। इस प्रकार दो हजार वर्ष से पहले मध्यदेश की भाषा, वहिर्भारत के बौद्धों की धार्मिक भाषा बनी”२ डाक्टर सुनीति कुमार चटर्जी 'ओरिजन एण्ड डिवलेपमेंट आफ् दी बंगाली लांगवेज, नामक प्रसिद्ध और विशाल ग्रन्थ के रचयिता और आर्यभाषा शास्त्र के पण्डित हैं, उनको डी० लिट् की उपाधि भी प्राप्त हो चुकी है, इसलिये उन्हों ने जो कुछ लिखा है, उसकी प्रामाणिकता अधिकतर ग्राह्य एवं निर्विवाद है । परन्तु उनके लेख के कुछ अंश ऐसे हैं, जो तकरहित नहीं । वे कहते हैं."बुद्धदेव के उपदेश पूर्व की वोली (प्राच्य प्राकृत) में हुये. जो कोशल काशी और मगध में प्रचलित थी” इसके बाद वे यह लिखते हैं “फिर वे (उपदेश) इस प्राच्य प्राकृत से और प्राकृतों में अनुदित हुये, मथुरा और उज्जैन की भाषा में जो अनुवाद हुआ उसका नाम दिया गया पालि" उनके कथन के इन अंगों को पढ़कर यह प्रश्न होता है कि जिस प्राच्य प्राकृत में वुद्धदेव ने उपदेश दिये, उसका क्या नाम था ? उसका नाम 'पालि, तो हो नहीं सकता, क्योंकि 'पालि, तो प्राच्य प्राकृत के उस अनुवाद का नाम है, जो मथुरा और उज्जैन में वोली जानेवाली भाषा (प्राकृत) में हुआ। क्या उसका नाम मागधी था ! निसन्देह उसका नाम मागधी होगा, और उस समय यह भाषा कोशल और काशी में भी बोली जाती होगी। यह बात निश्चित. है कि बुद्धदेव ने अपने उपदेश देशभाषा में ही दिये, उनका उपदेश मगध, कोशल और काशी में ही अधिकतर हुआ है, इसलिये उनकी भाषा का नाम मागधी होना ही निश्चित है । वौद्ध लोग इसीलिये कहते हैं-

"मागधिकाय सभाव निरुत्तिया, अथवा 'सा मागधी मूलभासा, इत्यादि।

ऐसी अवस्था में वौद्धमागधी को ही पहली प्राकृत मानना पड़ेगा, और

२ देखो विशालभारत भाग ७ अंक ६ का पृष्ट ८४०