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स्योरी हौं न मृद हौं न केवट कहूं को
त्यों न गौतमी तिया हौं जापैपगधरि आओगे।
राम सों कहत पदमाकर पुकारि
तुम मेरे महापापन को पारहूं न पाओगे ।
झुठो ही कलंक सुनि सीता ऐसो सती तजी
साँचो ही कलंकी ताहि कैसे अपनाओगे ।


२-जैसो तैं न मोसों कहूं नेकहूं डरात हुतो
तैसौ अब हौंहू नेक हूं न तोसों डरिहौं ।
कहै पदमाकर प्रचंड जो परैगो .
तो उमंड करि तोसों भुजदंड ठोंकि लरिहौं।
चलो चलु चलो चलु बिचलु न बीच ही ते
कीच बीच नीच तौ कुटुंब कौ कचरिहौं।
परे दगादार मेरे पातक अपार तेऻहिं
गंगा की कछार में पछारि छार करिहौं।


३-हानि अरू लाभ जानि जीवन अजीवन हूं
भोगहूं वियोगहूं सॅंयोगहूं अपार है ।
कहै पदमाकर इते पै और केते कहौं
तिनको लख्यो न वेदहूं मैं निरधार है ।
जानियत याते रघुराय की कला कौ कहूं
काहृ पार पायो कोऊ पावत न पार है।
कौन दिन कौन छिन कौन धरी कौन ठौर
कौन जानै कौन को कहा धौं होनहार है।