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एक पद्य इनका और सुनिये, जिस में श्रीमती पार्वती अपने घर का विचित्र हाल वर्णन कर रही हैं:—

आप विष चाखै भैया षट मुख राखै
देखि आसन मैं राखै बसवास जाको अचलै।
भूतन के छैया आस पास के रखैया
और काली के नथैया हूं के ध्यान हूं ते न चलै।
बैल बाघ वाहन वसन को गयन्द खाल
भांग को धतूरे को पसारि देत अँचलै।
घर को हवाल यहै संकर की बाल कहै
लाज रहै कैसे पूत मोदक को मचलै।

सुदन की रचना की विशेषता यही है कि उन्हों ने प्रौढ़ भाषा में वीर रस का एक उल्लेखनीय ग्रन्थ लिखा। ये व्रजभूमि के ही निवासी थे और व्रजराज कहलाने वाले राज दरबार में रहते थे इसलिये वे अपने ग्रंथ को साहित्यिक व्रजभाषा में ही लिख सकते थे। परन्तु उन्हों ने ऐसा नहीं किया। अनेक भाषाओं पर अपना अधिकार प्रकट करने के लिये पंजाब और खड़ी बोली के वाक्य और शब्द भी उस में मिलाये। ऐसा करने से उनकी अनेक भाषाभिज्ञता तो प्रकट हुई परन्तु व्रजभाषा की साहित्यिकता सुरक्षित न रह सकी। उनकी व्रजभाषा उतनी प्रौढ़ नहीं है जितनी उसे होना चाहिये था। फिर भी सुजान चरित्र में उसका बड़ा सुन्दर साहित्यिक रूप कहीं कहीं दृष्टिगत होता है, जिससे उनका कविकर्म्म अपनी महत्ता बनाये रखता है।

व्रजबासी दास अपने 'व्रजविलास' के कारण बहुत प्रसिद्ध हैं। ये जाति के ब्राह्मण और वल्लभ सम्प्रदाय के शिष्य थे। मथुरा या वृन्दावन में इनका निवास था। इन्हों ने संस्कृत 'प्रवोध चन्द्रोदय' नाटक का विविध छन्दों में अनुवाद किया परन्तु यह ग्रन्थ सर्व साधारण को उतना