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१—एकै एक सरस अनेक जे निहारे तन
भारे लाज भारे स्वामि काज प्रतिपाल के।
चंग लौं उड़ायो जिन दिली की वजीर भोर
मारी बहु मीरन किये हैं बेहवाल के।
सिंह बदनेस के सपूत श्री सुजान सिंह
सिंह लौं झपटि नख दीन्हें करवाल के।
वेई पठनेटे सेल सांगन खखेटे
भूरिधूरि सों लपेटे लेटे भेंटे महाकाल के।
२—सेलन धकेला ते पठान मुख मैला होत
केते भट मेला हैं भजाये भ्रुव भंग मैं।
तंग के कसेते तुरकानी सब तंग कीनी
दंग कीनी दिली औ दुहाई देत बंग मैं।
सूदन सराहत सुजान किरवान गहि
धायो धीर धारि बीरताई की उमंग मैं।
दक्खिनी पछेला करि खेला तैं अजब खेल
हेला मारि गंग मैं रुहेला मारे जंग मैं।
३—बंगन के लाज मऊ खेत की अवाज यह
सुने व्रजराज ते पठान वीर बबके।
भाई अहमद खान सरन निदान जानि
आयो मनसूर तौ रहै न अब दब के।
चलना मुझे तो उठ खड़ा होना देर क्या है
बार बार कहेते दराज सीने सब के।
चण्ड भुज दण्ड वारे हयन उदण्ड वारे
कारे कारे डोलनि सवारे होत रब के।