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रूपा ह्वै गये केस रोय रँग रूप गँवावा
सेजन को बिसराम पिया बिन कबहुँ न पावा।
कह गिरिधर कविराय लोन बिन सबै अलोना।
बहुरि पिया घर आउ कहा करिहौं लै सोना।

इनके किस किसी पद्य में साँईं शब्द मिलता है। यह किंवदन्ती है कि जिन कुंडलियाओं में साँईं शब्द आता है वे उनकी स्त्री की बनाई हुई हैं। सम्भव है कि ऐसा हो। परन्तु निश्चित रूप से कोई बात नहीं कही जा सकती। जो दो सरस पद्य मैंने ऊपर लिखे हैं और एक पद्य जो श्रृंगारगार रस का लिखा गया है उनसे कवि का सरस हृदय होना स्पष्ट है। श्रृंगार रस के पद्य में कितनी भावुकता है! इसका वाच्यार्थ कितना साफ़ है। मेरी सम्मति है कि गिरिधर कविराय वास्तव में कवि हृदय थे। हाँ, कुछ पद्यों में वे असंयत शब्द-प्रयोग करते देखे जाते हैं। इसका कारण पद्य गत बिषय के यथार्थ चित्रण की चेष्टा है। प्रमाण-स्वरूप चौथे पथ को देखिये। शिष्टता को दृष्टि से उसमें असंयत-भाषिता अवश्य है। परन्तु विषयानुसार वह बुरा नहीं कहा जा सकता। इस दृष्टि से अपने इस प्रकार के प्रयोगों के विषय में वे इस योग्य नहीं कि उन पर कटाक्ष किया जाय। उनकी भाषा में भो अधिकतर अवधी और व्रजभाषा के ही शब्द आते हैं। अन्य भाषा के या ग्रामीण शब्द जो यत्र तत्र आ गये हैं उनके लिये केवल इतना ही कहा जा सकता है कि वे यदि और अधिक संयत होते तो अच्छा था। कुछ लोगों की सम्मति है कि बैताल की भाषा इनकी भाषा से अच्छी है। निस्संदेह, शब्द-विन्यास में बैताल उनसे अधिक संयत हैं। परंतु दोनों के हृदय में अंतर है। वे असरस हृदय हैं और ये सरस-हृदय।

घाघ कौन थे, किस जातिके थे, यह नहीं कहा जा सकता। उनका नाम भी विचित्र है। उससे भी उनके विषयमें कुछ अनुमान नहीं किया जा सकता। कुछ लोग कहते हैं, वे कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे वे जो हों, परंतु उनके अनुमवी पुरुष होनेमें सन्देह नहीं। उन्होंने जितनी बातें कहीं हैं, वे सब नपी-तुली हैं