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       ऐसे आम दीन्हें दयाराम मन मोद करि
       जाके आगे सरसों सुमेरु सी लगत है।
  इस पद्य में बेचारे दयाराम को खटाई में डाल दिया गया है। दो 
पद्य
इनके शान्तरस के भो देखियेः--
 १---पृथु नल जनक जजाति मानधाता ऐसे
         केते भये भूप जस छिति पर छाइगे।
     कालचक्र परे सक्र सैकरन होत जात
         कहाँ लौं गनावौं विधि बामर बिताइगे।
     बेनी साज संपति समाज साज सेना कहाँ
         पाँयन पसारि हाथ खोले मुख बाइगे।
     छुद्र छिति पालन की गिनती गिनावै कौन
         रावन से बली तेऊ बुल्ला से बुलाइगे।
 २---राग कीने रंग कीने तरुनी प्रसंग कीने
          हाथ कीने चीकने सुगंध लाय चोली में ।
     देह कीने गेह कीने सुंदर सनेह कीने
          बासर बितीत कीने नाहक ठिठोली में ।
     बेनी कबि कहै परमारथ न कीने मूढ़
          दिना चार स्वाँग सो दिखाय चले होली में।
     बोलत न डोलत खोलत पलक हाय
          काठ से पड़े हैं आज काठ की खटोली में।
     
   दो रचनायें श्रृंगार रस की भी देखियेः-
 १---बिपत बिलोकत ही मुनि मन डोलि उठे
          बोलि उठे, बरही बिनोद भरे बन बन ।