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२---फूलि उठे कमल से अमल हितू के नैन कहै रघुनाथ भरे चैन-रस सियरे । दौरि आये भौंर से करत गुनी गुन गान सिद्धि से सुजान सुखसागर सों नियरे। सुरभी सी खुलन सुकवि की सुमति लागी . चिरिया सी जागी चिन्ताजनक के जियरे। धनुष पै ठाढ़े राम रवि से लसत आजु भोर केसे नखत नरिंद भये पियरे । ३---सूखति जात सुनी जब सों कछु खात न पीवत कैसे धौं रैंहै । जाकी है ऐसी दसा अबहीं रघुनाथ सो औधि अधार क्यों पैहे । ताते न कीजिये गौन बलाय ल्यों गौन करे यह सीस बिसैहै । जानत हौ दृग ओट भये तिय प्रान उसासहिं के सँग जैंहै । ४---देखिबे को दुतिपूनो के चंद की हे रघुनाथ श्रीराधिका रानी । आई बुलाय कै चौतरा ऊपर ठाढ़ी भई सुख सौरभ सानी । ऐसी गयी मिलि जोन्ह की जोत मैं रूप की रासि न जाति बखानी। बारन ते कछु भौंहन ते कछु नैनन की छबि ते पहिचानी ।