पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४१८

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     होति सबै सुख की जनिता बनि
             आवत जो वनिता कविताई ।
२---श्रीहरि को छबि देखिबे को अँखियां
             प्रति रोमन में करि देतो ।
    बैनन के सुनिबे कहँ श्नौन
             जितै चित तू करतो करिहेतो।
    मोढिग छोड़न काम कछू कहि
             तोष यहै लिखतो बिधि एतो।
    तो करतार इती करनी करि कै
             कलि मैं कल कीरति लेतो ।
 रघुनाथ बंदीजन महाराज काशिराज बरिवंड सिंह के राजकवि थे।

उन्होंने इनको काशी के सन्निकट चौग नामक एक ग्राम ही देदिया था। रघुनाथ ने 'रसिक मोहन', 'काव्य कलाधर' और 'इश्कमहोत्सव' नामक ग्रंथों की रचना की है और बिहारो सतसई को टीका भी बनाई है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने खड़ी बोलचाल में भी कुछ कविता की है। इनकी भाषा साहित्यिक व्रजभाषा है। इनके कुछ पद्य देखियेः-- १---ग्वाल संग जैबो ब्रजगायन चरैबो ऐबो

       अब कहा दाहिने ये नैन फरकत हैं।
   मोतिन की माल वारि डारौं गुंज माल पर
       कुंजन की सुधि आये हियो दरकत है ।
   गोबर को गारो रघुनाथ कछू याते भारो
       कहा भयो पहलनि मनि मरकत है ।
   मंदिर हैं मंदर ते ऊंचे मेरे द्वारिका के
       ब्रज के खरक तऊ हिये खरकत हैं ।