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इनकी रचना में अनुप्रासों की कमी नहीं हैं, परन्तु अनुप्रास इस प्रकार से आये हैं कि शब्द माला उनसे कंठगत पुष्पमाला समान सुसज्जित होती रहती है। वास्तवमें ये ब्रजभाषा-साहित्य के आचार्य्य हैं और इनकी रचना भाव रूपी भगवान शिव के शिर को मन्दार माला है। इनकी भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है और उसमें उसकी समस्त विशेषतायें पायी जाती हैं।
कवीन्द्र (उदयनाथ) कालिदास त्रिवेदी के पुत्र थे। इनका एक ग्रंथ 'रस- चन्द्रोदय' नामक अधिक प्रसिद्ध है। पिता के समान ये भी सरस हृदय थे। अपनी रचनाओं ही के कारण इनका कई राज-दर्बारों में अच्छा आदर हुआ। इनकी भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है और उसकी विषेशता यह है कि उसमें शृंगार रस का वर्णन उन्होंने बड़ी ही सरसता से किया। उनके कुछ पद्य देखिये:—
१—कैसी ही लगन जामैं लगन लगाई तुम
प्रेम की पगनि के परेखे हिये कसके।
केतिको छपाय के उपाय उपजाय प्यारे
तुम ते मिलाय के चढ़ाये चोप चसके।
भनत कबिंद हमैं कुंज मैं बुलाय कर
बसे कित जाय दुख दे कर अबस के।
पगन में छाले परे, नाँधिबे को नाले परे
तऊ लाल लाले परे रावरे दरस के।
२—छिति छमता की, परिमिति मृदुता की कैधों
ताकी है अनीति सौति जनताकी देह की।
सत्य की सता है सीलतरु की लता है
रसता है के बिनीत पर नीत निज नेहकी।