पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/४१०

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इसलिये इन्होंने इच्छानुसार अवधी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। फिर भी इनकी भाषा असंयत नहीं है ओर एक प्रकार को नियम वद्धता उसमें पायो जाती है। इनका 'काव्य निर्णय' नामक ग्रन्थ साहित्य सेवियों में आदर को दृष्टि से देखा जाता है। मैं इनकी कुछ रचनायें नीचे लिखता हूं। इनके द्वारा आप इनको कविता-गत विशेषताओं को बहुत कुछ जान सकेंगे।

१---सुजस जनावै भगतन ही सों प्रेम करै .
        चित्त अति ऊजड़े भजत हरि नाम हैं।
    दोन के दुख न देखै आपनो सुखन लेखै 
        विप्र पाप रत तन मैन मोहै धाम हैं।
    जग पर जाहिर है धरम निबाहि रहै
        देव दरसन ते लहत बिसराम हैं।
    दास जू गनाये जे असज्जन के काम हैं
        समुझि देखो येई सब सज्जन के काम हैं।
२---कढ़ि कै निसंकपैठि जात झुंडझुंडन मैं
        लोगन को देखि दास आनँद पगति है।
    दौरि दौरि जहीं तहीं लाल करि डारति है
        अङ्क लगि कंठ लगिबे को उमगति है।
    चमक झमकवारी ठमक जमक वारी
        रमक तमकवारी जाहिर जगति है ।
    राम असि रावरे की रन मैं नरन मैं
        निलज वनिता सी होरी खेलन लगति है।
३---नैनन को तरसैये कहाँ लौं कहाँ
        लौं हियो बिरहागि मैं तैये ।