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और ब्रह्मा एवं शिव के सात सात अवतारों की कथा लिखी है उन्होंने दुर्गापाठ का तीन अनुवाद कर के उसका नाम 'चंडी चरित्र' रखा है। पहला अनुवाद सवैयों में. दूसरा पौड़ियों में, ओर तीसरा नाना छन्दों में है। उन्होंने इस ग्रन्थ में ४०४ स्त्रो-चरित्र भी लिखे हैं, और इस सूत्र से अनेक नीति और शिक्षा सम्बन्धी बातें कही हैं. उन्हों ने उसमें कुछ अपने जीवन-सम्बन्धो बातें भी लिखी हैं और कुछ परमात्मा को स्तुति और ज्ञान सम्बन्धी विषयों का भी निरूपण किया है। फ़ारसी भाषा में उन्हों ने 'ज़फ़रनामा' नामक एक राजनीति-सम्बन्धी ग्रन्थ लिख कर औरङ्गज़ब के पास भेजा था। वह ग्रन्थ भो इसमें सम्मिलित है। अवतारों के वर्णन के आधार से उन्हों ने इसग्रन्थमें पुराणोंकी धर्म नीति. समाज नीति' एवं राजनीति-सम्बन्धी समस्त बातें एकत्रित कर दी हैं । यह बड़ा उप- योगी ग्रंथ है सिक्ख सम्प्रदाय के लोग इसको बड़े आदर की दृष्टि से देखते हैं। ब्रजभापा-साहित्य का इतना बड़ा ग्रन्थ सूर सागर को छोड कर अन्य नहीं है। इस ग्रन्थ में जितनो रचनायें गुरु गोविन्दसिंह की निज की हैं उनके सामने श्री मुख वाक पातसाहो दम लिखा है। अन्य रचनाओं के विषय में यह कहा जाता है कि वे गुरु गोवन्दसिंहजी के द्वारा रचित नहीं हैं वे श्याम और राम नामक दो अन्य कवियों की कृति हैं जो उनके आश्रित थे। उक्त ग्रन्थ की कुछ रचनायें नीचे उपस्थित की जाती हैं। उनको पढ़ कर आपलोग समझ सकेंगे कि वे कैसी हैं और उनके भाव और भाषा में कितना सौन्दय्य एवं लालित्य है। पहले गुरु गोविन्दसिंह को निज रचनाओं को ही देखियेः ---

१—चक चिन्ह अरु बरन जात
अरु पाँत नहिन जेहि ।
रूप रङ्ग अरु रेख भेख
कोउ कहि न सकत केहि ।
अचल मूरति अनभव
प्रकास अमितोज कहिज्जै ।