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कितनी योग्यता थी। रामायण को समस्त कथा इसमें वणित है किन्तु इस क्रम से कि उसमें कहीं अगेचकना नहीं आई । इसमें कवित्त और सवैये ही अधिक हैं। कोई कोई पद्य बड़े ही मनोहर हैं। उनमें से दो नीचे लिखे जाते हैं:-

{{Larger|१-ए बनबास चले दोउ सु दंर कौतुक को सियसंग जुटीहै।
पाँवनपाव, न कोस चली अजहूं नहीं गाँव की सीवंछुटी है।
हाथ धरे कटिपूछति रामहिं नाथ कहौ कहाँ कंज कुटी है।
रोवत राघव जोवत सी मुख मानहुं मोतिन माल टुटी है।
२-एहोहनू कह श्रोरघुवीर कछू सुधि हैसिय कीछिति माँही।
है प्रभु, लंक कलंक बिना सुबसै बन रावन बाग की छाँहों।
जीवत है कहिबेहि को नाथ ! सु क्यों न मरी हमतें बिछुराहीं।
प्रान बसै पद पंकज में जम आवत है पर पावत नाहीं।

गुरु गोबिंद सिंह व्रजभाषा के महाकवि थे। इनका बनाया हुवा दशम ग्रंथ बड़ा विशाल ग्रंथ है। समस्त ग्रं थ सरस ब्रजभाषा में लिखा गया है। ये बड़े बीर और सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। गुरु नानक से ले कर गुरु अर्जुनदेव तक इनके सम्प्रदाय में शान्ति रही. परन्तु जहांगीर ने अनेक कष्ट दे कर गुरु अर्जुन देव को प्राण त्याग करने के लिये वाध्य किया तब सम्प्रदायवालों का रक्त ग्बोल उठा और उन्हों ने मुसल्मानों के सर्व- नाश का व्रत ग्रहण किया क्रमशः वद्ध मान हो कर गुरु गोविन्दसिंह के समय में यह भाव बहुत प्रवल हो गया था। और इसी कारण जब गुरु तेगवहादुर उनके पिता का औरङ्गज़ेब द्वारा संहार हुआ तो उन्हों ने बड़ी बोरता से मुसल्मानों से लोहा लेना प्रारंभ किया। गुरु अर्जुनदेव ने ही आदि ग्रन्थ साहब का संग्रह तैयार किया था। इस ग्रन्थ में उनकी बहुत अधिक रचनायें हैं, जो अधिकतर ब्रजभाषा में लिखो गई हैं। उनकी कुछ रचनायें मैं पहले लिख आया हूँ । विषय को स्पष्ट करने के लिये उनके कुछ पद्य यहाँ ओर लिखे जाते हैं:-