कभी 'शंभुकवि' अथवा 'नाथ कवि अपनेको लिखते थे । बड़ी सरस ब्रज- भाषामें उन्होंने रचना को है। उनकी उत्प्रेक्षायें बड़ी मनोहर हैं। उनके जितने पद्य हैं उनमें से अधिकांश सरस हैं। उनकी भाषा को निस्संकोच टकसाली कह सकते हैं। व्रजभाषा को अपनी रचना द्वारा उन्होंने भी गौरवित बनाया है। उनके दो पद्य नोचे लिखे जाते हैं:-
१-फाग रच्यो नन्द नन्द प्रवीन बजैं
बहु बीन मृदंग रबाबैं ।
खेलतीं वै सुकुमारि तिया जिन
भूषण हूं की सही नहीं दाबैं ।
सेत अबीर के धूधंरु मैं इमि
बालन की बिकसी मुख आबैं ।
चाँदनी में चहुँ ओर मनों नृप
शंभु बिराज रही महताबैं ।
२-कौहर कौल जपा दल विद्रु म का
इतनी जु वँधूक मैं कोति है ।
रोचन रोरी रची मेंहदी नृपशंभु
कहै मुकुता सम पोति है ।
पांय धरै ढरै ईंगुरई तिन मैं
खरी पायल की घनी ज्योति है ।
हाथ द्वै तीनक चार हूं ओर लौं
चाँदनी चूनरी के रंग होति है ।
इस शतक में एक मुसल्मान सहदय कवि भी रीति ग्रंथकार हो गये हैं। उनका नाम मुबारक है। अवध के बाराबंकी जिले में बिलग्राम नामक एक प्रसिद्ध कस्बा है, जिसको विद्वानों और सहृदयों के जन्मभूमि होने