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कारो कान्ह कहति गँवारी ऐसी लागति है,

मोहि वाकी स्यामताई लागत उँज्यारी है।

मन की अटक तहाँ रूप को बिचार कहां

रीझिबे को पैंडो तहाँ बूझ कछु न्यारी है।


३-प्रेम रंग पगे जगमगे जगे जामिनि के

जोबन की जोति जगि जोर उमगत है।

मदन के माते मतवारे ऐसे घूमत हैं

झूमत हैं झुकि झुकि झँपि उघरत हैं ।

आलम मों नवल निकाई इन नैननि को

पाँखुरी पदुम पै भँवर थिरकत है ।

चाहत हैं उडिबे को देखत मयंक मुख

जानति हैं रैनि ताते ताहि मैं रहत हैं।


४-कैधों मोर सोर तजि गयेरी अनत भाजि

कैधों उत दादुर न बोलत हैं ए दई ।

कैघों पिक चातक बधिक काहू मारि डारे

कधों बकपाँति उत अंत गति है गई ।

आलम कहत आली अजहूं न आये स्याम

कैधों उतरीति बिपरीति बिधि ने ठई ।

मदन महीप की दहाई फिरिबे ते रही।

जूझि गये मेघ कैधों बीजुरी सती भई ।


५-पैंडो समसूधो बैंडो कठिन किवार द्वार

द्वारपाल नहीं तहाँ सबल भगति है ।