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चिंता अनुचित धरु धीरज उचित
सेनापति ह सुचित रघुपति गुन गाइये।
चारि बरदानि तजि पांय कमलेच्छन के
पायक मलेच्छन के काहे को कहाइये ।

विरक्ति-सम्बन्धी उनके दो पद्य और देखिये:-

१-पान चरनामृत को गान गुन गानन को।
हरिकथा सुनेसदा हिये को हुलसियो।
प्रभु के उतीरनि की गूदरी औ चीरनि की।
भाल भुज कंठ उरछापन कोलखियो।
सेनापति चाहत है सकल जनम भरि
वृदावन सीमा ते न याहर निकसियो।
राधा मनरंजन की सोभा नैन कंजन की
मालगरे गुंजन की कुंजन को बसियो।

२-महामोह कंदनि में जगत जकंदनि में
दीन दुख हुँदनि में जात है बिहाय कै ।
मुख को न लेस है कलेस सब भांतिन को
सेनापति याहीते कहत अकुलाय के।
आवै मन ऐसी घरबार परिवार तजौं
डारौं लोक लाजकेसमाज बिसराय के।
हरिजन पुजनि में वृदावन कुंजनि में
रहौं बैठि कई तरवर तर जाय कै।

एक पद्य उनका ऐसा देखिये जिसमें आर्य ललना की मर्यादाशीलता का बड़ा सुंदर चित्र है:-