पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३२४

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बराबर हैं । बाबा रघुनाथ दास का विश्राम सागर भी अवधी भाषा में लिखा गया है, और इसमें सन्देह नहीं कि यह भी अवधी भाषा का उत्तम ग्रन्थ है। उसका प्रचार भी हुआ। परन्तु इन कतिपय ग्रन्थों के द्वारा उस न्यूनता की पूर्ति नहीं होती जो ब्रजभाषा की विशाल ग्रंथमालाओं के सामने अवधी को प्राप्त हुई । जब यह विचार किया जाता है कि ब्रजभाषा के इस व्यापकता और विस्तार का क्या कारण है तो कई बातें सामने आती हैं। मैं उनको प्रगट करना चाहता हूं।

यह देखा जाता है कि चिरकाल से मध्यदेश की भाषा को ही प्रधानता मिलती आयी है। जिस समय संस्कृत भाषा का गौरवकाल था। उस समय भी इस प्रान्त से ही उसका प्रचार अन्य प्रदेशों में हुआ । जब प्राकृत भाषा का प्रचार हुआ तब भी शौरसेनी को ही अन्य प्राकृतों पर विशिष्टता मिली और उसी का अधिक विस्तार अन्य प्रदेशों में हुआ। संस्कृत के नाटकों में शिष्ट भाषा के रूप में शौरसेनी ही गृहीत हुई है। कारण इसका यह है कि आर्य सभ्यता इसी स्थान से अन्य प्रदेशों में फैली। और इसी स्थान से आर्यों के विशिष्ट दलों ने जाकर अन्य प्रदेशों पर अधिकार किया। ऐसी अवस्था में उनकी भाषाओं का महत्व जो अन्य प्रान्तवालों ने स्वीकार किया तो यह आश्चर्यजनक नहीं, क्योंकि यह देखा जाता है कि राज्यभाषा ही प्रधानता लाभ करती है। जिस समय व्रज- भाषा का उदय हुआ उस समय भी मध्यदेश की ही राज्य-सत्ता का प्रभाव भारतवर्ष पर था। उन दिनों अकबर सम्राट् था और उसकी राजधानी अकबराबाद या आगरे में थी। जो व्रजप्रान्त के अन्तर्गत है। अतएव वहां की भाषा का प्रभाव अन्य प्रदेशों पर पड़ना स्वाभाविक था. विशेष कर उस अवस्था में जब कि अकबर के समस्त बड़े अधिकारी व्रजभाषा से स्नेह करते थे। इतना ही नहीं वे व्रजभाषा में स्वयं रचना करके भी उन दिनों उसे समादृत बना रहे थे। मैं राजा बीरबल, राजा टोडरमल और रहीम खां खानखाना की रचनाओं को ऊपर उद्धृत कर आया हूं। वे ही मेरे कथन के प्रमाण हैं, अकबर स्वयं व्रजभाषा में कविता करता था। कुछ पद्य उसके भी देखियेः -