पृष्ठ:हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास.djvu/३१६

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एक पद्य उनका और देखियेः-

सरवर नीर न पीवहीं स्वाति वुन्द की आस।
केहरि कबहुँ न तृन चरै जो ब्रत करै पचास।
जो व्रत करै पचास विपुल गज-जूह बिदारै।
धन ह्वै गर्व न करै निधन नहिं दीन उचारै।
नरहरि कुलक सुभाउ मिटै नहिं जब लगि जीवै।
बरु चातक मरि जाय नीर सरवर नहिं पीवे।

कवि गंग अकबर-दरबार के एक नामी कवि थे। रचना जो इनकी मिलती है वह प्रौढ़ है। इनका कोई ग्रन्थ अब तक नहीं मिला है परन्तु जो स्फुट पद्य पाये गये हैं उनसे उनकी योग्यता का पूरा परिचय मिलता है। किसी किसी की यह सम्मति है कि इनका अन्तिम समय बड़ा दुःखद था। कहा जाता है कि वे हाथी के पैरों से रौन्दवा दिये गये। भिखारीदास का एक दोहा है जिसमें उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी के साथ इनकी भी प्रशंशा की है और इनको अच्छा कवि माना है। वह दोहा यह है-:

तुलसी गंग दुवौ भये, सुकबिन के सरदार।
इनकी कविता में मिली, भाषा विविध प्रकार।

रहीम खां खान खाना इनका बड़ा आदर करते थे. कवि गंग ने उनकी प्रशंसा में कुछ रचनायें भी की हैं। उनकी कुछ कवितायें नीचे लिखी जाती हैं:-

बैठी थी सखिन संग पिय को गवन सुन्यो,
सुख के समूह में वियोग आग भरकी।
गंग कहैत्रिविधि सुगंध लै पवन बह्यो,
लागतही ताके तन भई विथा जर की।